आज देशभर में ईद-अल-अजहा या बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है. इसको लेकर बीते कई दिनों से तैयारियां जोरों पर थी. बकरीद के त्योहार को कुर्बानी के दिन के रूप में भी याद किया जाता है. इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक रमजान के दो महीने बाद कुर्बानी का त्योहार बकरीद आता है.
बकरीद पर दी जाएगी कुर्बानी
हमारे देश के अलावा किसी भी और जगह पर ईद-अल-अजहा को बकरीद नहीं कहा जाता है. आज के दिन आमतौर पर बकरे की कुर्बानी दी जाती है, इसलिए हमारे देश में इसे बकरीद भी कहते हैं. आज के दिन बकरे को अल्लाह के लिए कुर्बान कर दिया जाता हैं. इस धार्मिक प्रक्रिया को फर्ज-ए-कुर्बान कहा जाता है.
इस साल ये है तैयारी
देशभर में इस साल 21 जुलाई को बकरीद का त्योहार मनाया जाएगा. इस खास मौके पर ईदगाहों और प्रमुख मस्जिदों में ईद-उल-अजहा की विशेष नमाज सुबह 6 बजे से लेकर 10.30 बजे तक अदा करने की तैयारी है. बता दें कि बीते साल कोरोना संक्रमण की भयावयता की वजह से लोगों को घर से ही नमाज अदा करनी पड़ी थी. बकरीद का महत्व
रमजान की ईद के 70 दिनों बाद बकरीद मनाई जाती है. बकरीद को ईद-अल-अजहा या फिर ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है. आज के दिन नमाज अदा करने के बाद बकरों की कुर्बानी दी जाती है. कुर्बानी पर गरीबों का खास ख्याल रखा जाता है. कुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं. जिसका एक हिस्सा गरीबों को दिया जाता है, दूसरे हिस्से को दोस्तों, सगे संबंधियों में बांटा जाता है. वहीं तीसरे हिस्से को खुद के लिए रखा जाता है.
ईद-अल-अजहा या बकरीद मनाए जाने के पीछे मुसलमानों का मानना है कि पैगंबर इब्राहिम की कठिन परीक्षा ली गई थी. इसके लिए अल्लाह ने उनको अपने बेटे पैगम्बर इस्माइल की कुर्बानी देने को कहा था. इसके बाद इब्राहिम आदेश का पालन करने को तैयार हुए. वहीं बेटे की कुर्बानी से पहले ही अल्लाह ने उनके हाथ को रोक दिया. इसके बाद उन्हें एक जानवर जैसे भेड़ या मेमना की कुर्बानी करने को कहा गया. इस प्रकार उस दिन से लोग बकरीद को मनाते आ रहे हैं ।